Sunday, 9 May 2021

हारेगा यह महाप्रलय

क्या प्रलय इसे ही कहते हैं?

प्रियजन अपनों को त्वरित छोड़ 

बिन बोलेमुँह को मूक मोड़ 

चल दिये अकेले बिन विदाई

इसके पहले कि व्यथा आई

सब स्वाहा सब कुछ भस्म हुआ

क्या नाश इसी को कहते हैं?


इसके पहले कि समझ सके

मानव थोड़ा कुछ सम्हल सके

कैसी विपदा कैसा संकट

कितना प्रचंड कैसा उत्कट

यह महाकाल का आनाक्या

विध्वंस इसी को कहते हैं?


शय्या पर लेट साँस रुकती

पर आँखें दूर-पास तकतीं

कोई भी निकट नहीं दिखता

ऐसे में जीवन क्यों टिकता

आँखों की बेबस है पुतली

ग्रीवा में है नली डली

हिचकी भी नहीं निकल पाती

अब हिलती है जीवन-बाती

बिन बोले क्या होगा प्रयाण

क्या आन पड़ा मृत्यु प्रमाण

ना शब्द विदा के निकल सके

क्यों दूर खड़े हैं विकल सगे


दो गज ज़मीन तो तय थी पर

दो गज की दूरी बहुत हुई

अर्थी को कंधा नहीं मिला

क्या इस जीवन का यही सिला

धू-धू कर जलती अग्नि है

पर निकट  भ्राता-भगिनी है

सर्वनाश संबंधों का

क्या प्रलय इसे ही कहते हैं


यह कैसा प्रबल बवंडर है

यह भय जो सबके अंदर है

क्या होगा कैसे होगा कब

यह अंधियारा जायेगा कब

क्या नष्ट हुआ मानव जीवन

टूटी सभ्यता की सीवन

क्या प्रलय इसी को कहते हैं


पर कभी तो सूरज जागेगा

यह तमस कभी तो भागेगा

मानव सहता आया प्रहार

झेले हैं इसने कई कुठार

इस बार विजय फिर से होगी

विपदा ख़त्म निश्चय होगी

बस थोड़ा धीरज और करो

प्रत्यंचा कस, बाण धरो

यह कीट चतुर है पातक है

पर शौर्य हमारा घातक है

विजय हमारी है निश्चय

हारेगा तय है महाप्रलय

हारेगा तय है महाप्रलय

13 comments:

  1. बहुत बढ़िया, आँखें नम हो गयीं!

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  2. अवश्य सर,
    इन शब्दों में असीम शक्ति है, जिसके रसपान मात्र संजीवनी के समान है और वास्तव में यह एक ऊर्जा प्रदान करने वाली रचना है।
    सादर, राणा,

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  3. हृदयस्पर्शी 🙏🙏

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  4. परिस्थितियों के मार्मिक चित्रण के साथ आशा की किरण दिखाती रचना

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  5. "इस बार विजय फिर से होगी
    विपदा ख़त्म निश्चय होगी"
    वर्तमान समस्या,संकट और मानव की दुरवस्था का सजीव एवं मार्मिक चित्रण। धन्यवाद सर।

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  6. Manav ka dukh dikhta hai,
    Kavi komal Hriday rakhta hai

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  7. Well expressed the current situation. So scary and sad.

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  8. Great writing Shubhranshu ji

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  9. Extremely well written and very touching.

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  10. मर्मस्पर्शी ओजस्विनी रचना शुभ्रांशु जी

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