कहते हैं कि बादाम खाने से दिमाग़ तेज होता है। मैंने अपने ऊपर बादाम का कोई असर होते तो नहीं देखा, पर वैज्ञानिक कहते हैं तो ठीक ही कहते होंगे। किसी सरकारी वैज्ञानिक या आरडीएसओ के मंतव्य पर रेल मंत्रालय ने यह तय कर दिया है कि हर मीटिंग में उपस्थित प्रतिभागियों को चाय के साथ अनिवार्य रूप से छ: बादाम परोसे जाएँ। यह ज़िम्मेदारी सभा के आयोजक अधिकारी को दी गई है। रेल-मंत्रालय का एक उप-निदेशक इसका लेखा-जोखा रखेगा। रेल भवन के अधिकारी अब बादाम खाएँगे चाहे आम यात्री को चीनियाबादाम (मूंगफली) ही क्यों ना परोसते रहें।
इस प्रस्ताव पर विचारार्थ रेल-भवन में एक कमिटी बनी और बड़ी मंत्रणाएँ हुईं। कई सभाओं के बाद भी जब अनिर्णय की स्थिति बनी रही, तब अगली सभा में सभी को पाव-पाव भर बादाम परोसे गये। इसके बाद अक्लवर्द्धित कमिटी ने आनन-फ़ानन में सिफारिश कर दी कि हर सभा में इसी प्रकार हर प्रतिभागी को पाव-पाव भर बादाम दिये जाएँ क्योंकि क्या इसका प्रभाव हमने सिद्ध नहीं किया। कमिटी की बादाम खाने के बाद त्वरित बढ़ी कार्यदक्षता को देखकर रेल के बड़े अधिकारियों में एक चिंता की लहर दौड़ गई कि यदि जूनियर अधिकारियों को इतना दिमाग़ आ गया तो हमारे सिग्नेचर गुणों का क्या होगा, यथा फ़ाईल पर बैठना, अनिर्णय से जनता को और राष्ट्र को सस्पेंस में रखना, ऊहापोहः परमो धर्मः का पालन करना। और यदि रेलवे इतने बादाम बाँटने लगे तो बजट में बड़ा घाटा हो सकता है - लाईन दोहरीकरण, पुल-निर्माण, स्टेशन डेवलपमेंट, और वंदे भारत ट्रेनों के लिये तो धन बचेगा ही नहीं।
फिर बड़े अधिकारियों ने आपस में एक बैठक की, जिसमें हरेक को आध-आध सेर बादाम बाँटे गये, अखरोट के तेल में बना बादाम का हलवा और बादाम को महीन घिसकर बनाई ठंडई भी परोसे गये। फिर भी बढ़ती उम्र के कारण हफ़्ता भर लगा। निर्णय लिया गया कि सभाओं में हर प्रतिभागी को छ:-और-सिर्फ़-छ: बादाम दिये जाएँ। हमें तेज़-दिमाग़ अधिकारी तो चाहियें, पर इतने तेज़-दिमाग़ भी नहीं कि हमारे ही कान काटने लगें। वित्त विभाग ने सहमति दे दी, पर उस प्रक्रिया में भी चार-पाँच सेर बादाम ख़र्च हो गये।
अब बैठकों का मापदंड बदल गया है। साहब लोग कहने लगे हैं कि यदि साठ बादामों वाली, यानि दस लोगों की, बैठक में कोई फ़ैसला नहीं हुआ तो क्यों ना एक बड़ी सभा बुला ली जाए - एक सौ बीस बादामों वाली? अब बात होने लगी है कि टेंडर कमिटी अठारह-बादामी होगी या चौबीस-बादामी। कहते हैं कि इस पथप्रवर्त्तक (पाथब्रेकिंग) विचार की प्रेरणा इस गीत से मिली है।
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अब यदि आप मीटिंग हेतु रेल-भवन जाएँ तो सुबह का नाश्ता ना करें; चाय की चुस्कियों के साथ छ: भुने हुए बादाम आपकी दिनभर की शारीरिक और मानसिक देखभाल के लिये पर्याप्त होंगे। परंतु यह आवश्यक होगा कि सभी छ: बादाम सभा के दौरान खा लिये जाएँ। बैठक के कार्यवृत्त में इसका स्पष्ट उल्लेख किया जाये कि हर अधिकारी ने पूरे छ:, और सिर्फ़ छ:, बादामों का सेवन किया था। बादाम बड़ी महँगी चीज़ है। कहीं ऐसा न हो कि कोई अधिकारी चुपके से दो-चार बादाम उठकर जेब में रख ले और हफ्ते भर की सभाओं के बाद घर में कोई पार्टी दे डाले। कोई बादामगेट टाईप घोटाला ना हो जाए। वरिष्ठ अधिकारियों को गोपनीय निर्देश दिये गये हैं कि वे अपने मातहतों की प्लेट पर लालची नज़र ना डालें और अपने कोटे के आधा दर्जन बादामों से ही संतोष करें।
अबतक के आँकड़ों से यह कह पाना कठिन है कि इस बादामी आदेश से रेलवे की वित्तीय स्थिति पर क्या असर पड़ेगा। यदि बजट घाटा बढ़ता है तो यात्री किराया बढ़ा दिया जाएगा। बादामों की संख्या में कटौती संभव नहीं है। दूसरे मंत्रालयों में भी सुगबुगाहट हो रही है, और दबी आवाज़ में बैठकों में बादाम की माँग की जाने लगी है। अब अच्छे-दिन सचिवालयों से निकलकर देश भर में जलवा दिखाने को कुलबुला रहे हैं।



