Sunday 13 March 2016

गाल-सटाऊ चुंबन

उमुआँ .. उमुआँ .. .. 

आपने अक्सर पार्टियों में ऐसी आवाज़ सुनी होगी। अरे ये मैं क्या कह रहा हूँ? आपने कहाँ सुनी होगी? आप तो हिंदी पढ़ रहे हैं? ये आवाज़ें हाई सोसाइटी की पार्टियों में सुनने में आती हैं । क्या कहा आपने? हाई सोसाइटी क्या होती है? हाई सोसाइटी का हिंदी में कोई अर्थ या पर्यायवाची शब्द नहीं होता। अरे भाई साहब, हिंदी में तो हाई सोसाइटी होती ही नहीं|

अरे मैंने भी कहाँ सुनी थीं ऐसी आवाज़ें, मानों कोई बिल्ली अपनी सहेली से सालों बाद मिल रही हो। वो तो एक बड़े उद्योगपति की पार्टियां आजकल टीवी पर दिखाई जा रही हैं, उसी मैं मैंने सुना। आप भी वॉल्यूम ऊँचा करके ध्यान से सुनेंगे तो आपको सुनाई देंगी। उन्ही उद्योगपति, मच्छीमार हवाईजहाज वाले या बियरवाले दढ़ियल साहब की पार्टियों की बात कर रहा हूँ, जो करोड़ों लेकर फुर्र हो गए| इन पार्टियों में गाल से गाल सटा कर एक दूसरे के कान में हौले से हवा छोड़ते हैं और कहते है, "उमुआँ .. उमुआँ"। और भी कुछ बोलते होंगे, जैसे, "यूअर प्लेस और माइन?" या, "उस कमीने को देखो, कैसा मिसेज़ शर्मा पर लाइन मार रहा है।"

सुना है कि सरकारी बैंकों और सचिवालयों के अधिकारी भी इन हाई सोसाइटी पार्टियों में शरीक होते थे। क्या वे भी उमुआँ .. उमुआँ करते थे? अब कंडक्ट रूल्स में उमुआँ .. उमुआँ करना मना तो नहीं है? सो करते होंगे, मेरी बला से। लेकिन एक उमुआँ पर नौ हज़ार करोड़ न्यौछावर कर दें, ये भी कोई बात हुई। मैं तो ऐसे गालसटाऊ नाटक के पाँच रुपये भी न दूँ। कान में हवा जाने से मेरी तो फुरफुरी छूट जाए। और बेचारा आम करदाता जो फ़िल्मी मैगज़ीन में उन सुंदरियों की तस्वीरें निहार कर ही अपने को निहाल समझता है - उमुआँ तो एक दिवास्वप्न सा ही रह जाता है। नौ हज़ार करोड़ हालाँकि उसी की कमाई के जाते हैं|

आपसे फिर मुखातिब होउँगा। तब तक के लिए उमुआँ .. उमुआँ|

एंड टेक केयर!

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