Thursday, 13 June 2019

बड़े बाबू और प्रोसीजर

मैं ही हूँ प्रोसीजर बाबू
नहीं किसी के आया क़ाबू
जनता हो या हो सरकार
न्यायपालिका या अख़बार
चाहे जितना ज़ोर लगा लें
क़लम चला लें या तलवार
मेरे आगे सब लाचार

बड़े सचिव ने फ़ाईल चलाई
उत्तम थे उनके सुविचार
लगने हैं उद्योग, कि खोलें
देश में नूतन कारोबार
नौकरियॉं फिर ख़ूब बढ़ेंगी
देश में ख़ुशहाली फैलेगी
रेलगाड़ी, बस और जहाज़
उपग्रह, रॉकेट, खेत, अनाज

पर मैंने जब नोटिंग डाली
ऑब्जेक्शन की स्याही काली
फ़ाईल भेज दें वित्त विभाग
उनकी फिर अनुमति के बाद
पर्यावरण विभाग से पूछें
कहीं नहीं हो कोई विवाद
फिर क़ानून विभाग का ठप्पा
सचिवालय का चप्पा-चप्पा
जब तक ना छानें, सरकार!
मेरी राय यही है, सर जी!
आगे बढ़ने में है रार

वैसे मैं हूँ अदना बाबू
लेकिन सिस्टम है बेक़ाबू
आप बड़े साहब हैं मेरे
पर पग-पग चक्कर बहुतेरे
मैं ना चाहूँ आप फँसें, सर!
प्रोसीजर ना भंग करें, सर!
और कैरियर अच्छा होगा
कहीं फँसे तो गच्चा होगा

काम का क्या है? होता होगा
यही देश ने अब तक भोगा
चाहे कोई करे ना कुछ, पर
पहनें सब सच का ही चोगा
सर आपके तीस बरस हैं
मंत्री जी के केवल पॉंच
ऑर्डर सरकारी हो कुछ भी
आप फूँककर पीवें छाछ

मंत्री आते जाते रहते
जनता के भी सपने बनते
आप तो सर ख़ुद बच के चलिये
फ़ाईल-पत्र पर कुछ मत लिखिये
मैंने अब तक के सचिवों को
यही ज्ञान बाँटा श्रीमान्
बेदाग़ सब हुए रिटायर
पेंशन पाया और सम्मान

साहब सुन कर मेरी राय
हुए बड़े भयभीत
सोचे, फिर कुछ गुन कर बोले
अगर यही है रीत
मैं काहे को जान फँसाऊँ
क्यों निष्ठा बेकार दिखाऊँ
आप, बड़े बाबू! हैं मेरे
असली तारणहार
ऐन वक़्त पर मुझे आपने
सही दिखाया द्वार

बड़े बाबू, इन पत्रों को अब
लगा ठिकाने घर चलें
ये सारे प्रस्ताव भी फाड़ें
कूड़ेदान के अंदर डालें
अब क्या करना
क्यूँकर डरना
तनखा को तो है ही आना
बस घर-दफ़्तर आना जाना
काम करें या बैठे ठाले
रूई कान में ठूँस के डालें
मेरा क्या कोई करे बिगाड़
मैं तो हूँ नियमों की आड़
मेरी नौकरी मेरी जान
कुर्सी से मेरी पहचान
जनता जाये चूल्हे भाड़।
 —-ooo—-

2 comments:

  1. दर्दनाक परन्तु बिल्कुल सही।

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