Saturday 6 March 2021

साहब ने सलाम भेजा है

मेरे कमरे का दरवाज़ा ज़रा सा खुला और एक बेधड़ के सिर ने अंदर झाँका और बेहद रहस्यमयी मुस्कान के साथ अनाउंस किया - साहब ने सलाम भेजा है।

मैंने नई नौकरी ज्वायन की थी और दफ़्तर के नियम-क़ायदों से वाक़िफ़ नहीं हुआ था। सोचा कि शायद बॉस सबको सुबह-सुबह सलाम भेजते होंगे मोटिवेट करने के लिये। लेकिन फिर मन में एक अपराध बोध-सा हुआ कि जूनियर तो मैं हूँ, सलाम मुझे भेजना चाहिये था। लेकिन मेरे पास साहब की तरह कोई चपरासी तो था नहीं जिसके माध्यम से मैं सलाम प्रेषित कर पाता। दफ़्तर में कुल जमा एक ही चपरासी था, और वो साहब के पास था।

मैंने अचकचा कर कहा, “साहब को कह दो मैंने भी सलाम भेजा है।अब जबकि चपरासी ही गया था तो मैं रिटर्न हरकारे से बॉस की प्रतिष्ठा में सलामी भेजने का मौक़ा क्यों छोड़ता।

चपरासी की आँखें विस्फ़ारित हो गयीं और वह पूरा का पूरा मेरे कमरे में दाखिल हो गया। सफ़ेद अचकन, नीचे धोती और पतलून का कोई हाईब्रिड वस्त्र, तोंद पर कसी चमकते पीतल के बकलवाली  पेटी, लाल साफ़ा और सीने पर तिरछी सजी एक अनावश्यक-सी दिखने वाली लाल पट्टी जो सिर्फ़ मातहतों में शासन-तंत्र का ख़ौफ़ पैदा करने के लिये बनी थी - ऐसी काया को देखकर मेरा हाथ चपरासी को सलाम करने के लिये उठने ही वाला था, तभी वह ब्रिटिश साम्राज्य का छोड़ा हुआ कारिंदा बोल पड़ा, “हुज़ूर।

मैंने झट से सलामी के लिये उठते हाथ से सर खुजाने का ढोंग किया और आत्मसम्मान की रक्षा का यथोचित प्रयास किया। पर उस अनुभवी चपरासी ने मेरी मनोस्थिति भाँप ली और सहानुभूतिपूर्वक बोला, “हुज़ूर, बड़े साहब ने आपको अपने कमरे में बुलाया है।फिर गहरी मुस्कान के साथ बोला, “साहब कुछ रंज में दिखते हैं।

अब मुझे समझ आया कि बॉस ने जो काम दे रखा था उसे पूरा करने की आख़िरी तारीख़ कल निकल चुकी थी, और शायद बॉस को आज उस काम के साथ मेरी भी याद आई होगी। मासूमियत की भी हद होती है। ख़ैर मैं बहानों की लिस्ट मन में तैयार करके बॉस के कमरे में दाखिल हुआ और तब दफ़्तर की कार्यप्रणाली का पहला महाज्ञान प्राप्त हुआ।

तमाम डाँट-डपट, भला-बुरा सुनने और अपने निकम्मेपन का सबूत इकट्ठा करने के बाद मैंने तय कर लिया कि अब सलामी का जवाब सलामी से नहीं दूँगा। वह दिन और आज का दिन - उसके बाद से मुशायरों और क़व्वाली के आयोजनों में भी यदि किसी ने सलाम किया तो मैं बिदक जाता हूँ औरठीक है, ठीक हैबोल कर काम चला लेता हूँ। लोग अजीब- सी नज़रों से देखते हैं औरबेहद बत्तमीज़ नमूना हैके भाव से मुँह बिचका देते हैं।

बड़े साहब ने याद किया हैवाले ख़तरनाक अनाउंसमेंट से भी मेरा साबका हो चुका है। उसके बारे में फिर कभी ... ...

8 comments:

  1. भाषा हर मैलोपर बदलती है। साहबने सलाम भेजा है का मतलब मै भी समझ नही पाया।

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    1. बुलाने का लखनवी अंदाज़ है।

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  2. WoW Shubhranshu ji Wah Wah ... ghareeb kaa salaam bhee qubool karein ...

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    1. ठीक है, ठीक है ☺️☺️

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  3. Shakeel was very supportive and a great manager of men in my opinion. This side of his personality was hidden to me all these years.
    You have a nice way of narrating experience. Please keep writing.

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  4. वाह सर, सलाम के अनगिनत आयाम

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  5. बेहतरीन लिखा है। साधुवाद।

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