Thursday 22 April 2021

श्रीमतीजी की मुस्कान

श्रीमतीजी महीनों से मुँह फुलाये बैठी हैं। लॉकडाउन कोई मैंने तो लगाया नहीं, मोदीजी ने लगाया था, फिर सारा ग़ुस्सा मुझपर क्यों? मैंने कहा कि भागवान दो हजार चौबीस आया ही चाहता है - इस बार  मोदी जी को हरा कर ही छोड़ना। पर वो तो मुझे ही मोदी मानकर झुँझलाहट निकाल रही हैं। फिर सोचा कहीं से एक ईवीएम का जुगाड़ करके घर में ही एक मॉक वोटिंग करवा कर श्रीमती जी को इस घरेलू मोदी को हराने का संतोष प्राप्त करवाया जाये। सुना है कि कुछ लोग जीपों में ईवीएम मशीन लेकर घूम रहे हैं और इसी प्रकार के उपक्रम के लिये किराये पर दे रहे हैं। उनका फ़ोन नंबर हो तो भेजियेगा।

फिर सोचा कि दीवारों पर एशियन या नेरोलैक पेंट करवा लिया जाये। इससे दो फ़ायदे होंगे। पहला तो यह कि दीवारें बोल उठेंगी और श्रीमती जी को गप-शप करने के लिये कंपनी मिल जायेगी। दूसरा यह कि बच्चे कागज-कॉपी छोड़कर दीवारों पर आड़े-तिरछे चित्र बनाने लगेंगे, टोमेटो केचप और अचार का तेल पोतने लगेंगे। टीवी की मॉडल-माता की तरह श्रीमतीजी के चेहरे पर मुस्कान फूट पड़ेगी, और वह फ़ौरन साबुन पानी से दीवारों को साफ़ करने को लपक लेंगी और मातृत्व के सच्चे सुख में डूब जाएँगी। यहॉं तौलिया ज़रा तिरछा टाँगने पर अपने को घंटों जीवन की शिक्षा और पूर्वजों तक को उपदेश दे डाला जाता है, वहाँ बच्चे दीवार पर चाहे गोबर लेप डालें, उनपर ननिहाल से मिले गुणों का प्रमाणपत्र वार दिया जाता है। फ़र्क़ नेरोलैक पेंट का ही लगता है।


तभी सर्फ़ एक्सेल के दाग अच्छे हैं वाला संदेश याद आया। छोरा स्कूल से आते समय धूल उड़ाता, कीचड़ में लोटता, और साइकिल की चेन के काले ग्रीज़ को आस्तीन पर पोंछता घर में दाखिल हुआ नहीं कि माँ की ख़ुशी की सीमा नहीं रहती।अब सर्फ़ एक्सेल के दस रुपये के पैक के पैसे वसूल, नहीं तो डबल-रोटर और ट्रिपल फ़ंक्शन वाला वाशिंग मशीन तो है ही। माता का वात्सल्य उमड़ पड़ता है, “ऐ मेरे लाल, तूने इन चीकट कपड़ों का जो सुख मुझे दिया है वो तेरे पापा की साफ़ क़मीज़ क्या ख़ाक देगी!” कभी-कभी सोचता हूँ ये स्कूलवाले आख़िरी घंटी कपड़े गंदे करने के लिये रिज़र्व कर लें और बच्चों को तरह-तरह के कचरानुमा दाग लगाने की ट्रेनिंग दें तो गृहणियों का जीवन सफल हो जाये और दांपत्य जीवन में ख़ुशियों की बहार आ जाये।


लगता है कि मैंने श्रीमती जी के स्थाई सुख की तरकीब ढूँढ ली है, बस अमल करना बाक़ी है। लेकिन बच्चे बड़े हो गये हैं।अब दीवारों पर चित्रकारी नहीं करते, ना ही कपड़े गंदे करते हैं। अब घर सैनिटाईज़ हो गया है, और उदास भी।


5 comments:

  1. Excellent blog, Shubhranshu. I had read a comment once from a woman who said she had yelled at her son for scratching his name on the wall, but after her son was off to the college she almost slapped the painter when he ran the brush on the scratched name while remodeling the house. Such is the joy in the nastiness of growing.

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  2. I am overwhelmed to see yr blog. Thanks boss, keep it up.👍

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  3. लाजवाब लेखन

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