मेहरारू - आज का खाये के मन बा?
साहेब - अरे जे खिया देबू, खा लेब।
मेहरारू - ठीक बा, तऽ रोटी अऊर लऊका के तरकारी बना दे तानी।
साहेब - अरे, ई कऊनो बात भईल? जब देखऽ तब रोटी-लऊका, जब देखऽ तब रोटी-लऊका। जा हम ना खाईब।
मेहरारू - त बोलीं ना का खाईब?
साहेब - अइसन करऽ कि जे बा से की …
मेहरारू - बोलीं, बोलीं, का खाईब?
साहेब - अऽ पूड़ी अऊर पेकची के तरकारी बना सकेलू?
मेहरारू - काहे ना बना सकीला? एकदम बना सकीला। रउआ तनी दऊर के बाज़ार से पेकची किनले आईं। आऽ रिफाईनो ख़तम बा। ऊहो एक बोतल लेले आईब।
साहेब - जाय द, रोटिये लऊका बना दऽ। अब एह घड़ी बाज़ार के दऊड़ी?
मेहरारू - ठीक बा, रोटिये लऊका ले आवतानी।
(आधा घंटा के बाद मेहरारू थरिया में पूड़ी अऊर कटोरी में पेकची के तरकारी, साथे ओल के चटनी, पियाज़, अचार, सबले के पधरली)
मेहरारू - ई लीं, राऊर पूड़ी अऊर पेकची के तरकारी आ गईल। आज राऊर जनमदिन बा, ई हम कईसे भुला सकीला? खाईंअब। हम आऊर गरम पूड़ी ले के आवतानी।
साहेब - सुनऽतारू? तनी हेने आवऽ।
मेहरारू - का हऽ जी, जल्दी बोलीं, कड़हिया धिकल जाता।
साहेब - अब का कहीं? भगवान तोहरा जईसन मेहरारू सबका के देस।
मेहरारू - रऊओ नूऽ? जाईं होने।
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Awesome!! True for 95% of the couples
ReplyDeleteप्रेम का एक ये भी रूप है जिसे बहुत ज्यादा शास्त्रीय महत्व नहीं मिलता....शुभ्रांशु जी ने इसे सरल और सहज भाव से रूपांकित किया हैं। साधु प्रयास
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