Saturday, 5 November 2022

एक भोजपुरी प्रेमकथा

मेहरारू -  जीसुनऽतानीं?
साहेब - का हऽ हो?

मेहरारू - आज का खाये के मन बा?

साहेब - अरे जे खिया देबूखा लेब।

मेहरारू - ठीक बातऽ रोटी अऊर लऊका के तरकारी बना दे तानी।

साहेब - अरे कऊनो बात भईलजब देखऽ तब रोटी-लऊकाजब देखऽ तब रोटी-लऊका। जा हम ना खाईब।

मेहरारू -  बोलीं ना का खाईब?

साहेब - अइसन करऽ कि जे बा से की …

मेहरारू - बोलींबोलींका खाईब?

साहेब - अऽ पूड़ी अऊर पेकची के तरकारी बना सकेलू?

मेहरारू - काहे ना बना सकीलाएकदम बना सकीला। रउआ तनी दऊर के बाज़ार से पेकची किनले आईं। आऽ रिफाईनो ख़तम बा। ऊहो एक बोतल लेले आईब।

साहेब - जाय रोटिये लऊका बना दऽ। अब एह घड़ी बाज़ार के दऊड़ी?

मेहरारू - ठीक बारोटिये लऊका ले आवतानी।

(आधा घंटा के बाद मेहरारू थरिया में पूड़ी अऊर कटोरी में पेकची के तरकारीसाथे ओल के चटनीपियाज़अचारसबले के पधरली)

मेहरारू -  लींराऊर पूड़ी अऊर पेकची के तरकारी  गईल। आज राऊर जनमदिन बा हम कईसे भुला सकीलाखाईंअब। हम आऊर गरम पूड़ी ले के आवतानी।

साहेब - सुनऽतारूतनी हेने आवऽ।

मेहरारू - का हऽ जीजल्दी बोलींकड़हिया धिकल जाता।

साहेब - अब का कहींभगवान तोहरा जईसन मेहरारू सबका के देस।

मेहरारू - रऊओ नूऽजाईं होने।


               —-०००—-

2 comments:

  1. Awesome!! True for 95% of the couples

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  2. प्रेम का एक ये भी रूप है जिसे बहुत ज्यादा शास्त्रीय महत्व नहीं मिलता....शुभ्रांशु जी ने इसे सरल और सहज भाव से रूपांकित किया हैं। साधु प्रयास

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