Thursday, 16 March 2023

एक राग दरबारी यह भी

मेरे बचपन का एक साल हाजीपुर में कटा, जहाँ मेरे पिताजी एसडीओ के पद पर कार्यरत थे। वहॉं मेरा एडमिशन एक खंडहरनुमा स्कूल में कराया गया। हाजीपुर एक छोटा शहर था, पर मेरे टाउन मिडिल स्कूल से बेहतर भी कुछ स्कूल थे। पर पता नहीं मेरा एडमिशन वहॉं क्यों कराया गया। वैसे उसी स्कूल ने मुझे नेतरहाट जाने के काबिल बनाया। शायद मेरे पिताजी को ऐसा कुछ अंदाज़ा था।

जब मेरी पोस्टिंग बेला हुई, तो चूँकि हाजीपुर निकट ही था, मैं अपने स्कूल की तलाश करके वहाँ पहुँच गया। ये फोटो काफ़ी कुछ उस काल का ही चित्रण करते हैं। शायद थोड़ा बहुत क्षरण और हो गया हो।

तो, अब बात मेरी गणित की कक्षा की।

एक दिन मैं बिना होमवर्क किये पहुँचा - ज्योमेट्री में कोई आयत बनाना था। अब मैं एसडीओ साहब का सपूत, पर मास्टर साहब को भी ताक़त दिखानी थी। सो मुझे आदेश मिला कि बेंच पर खड़े हो जाओ। अब बेंच पर खड़ा होना बोरे पर खड़े होने से कई गुना ज़्यादा दुखदायी हो सकता है, यह बात तो आप भी मानेंगे। बेंच पर खड़े प्रमादी छात्र की विज़िबिलिटी तो पूरे शहर में हो सकती है।

आनन-फ़ानन में पूरे स्कूल में खबर फैल गई कि एसडीओ साहब के लड़के को बेंच पर खड़ा होने की सजा हो गई है। अब तो मेरे माता-पिता ने मुझे कोई एंटाइटलमेंट सिखाई थी, ना ही मैंने ऐसा कभी सोचा था। जब मैं बेचारा इन सब बातों से बेख़बर बेंच पर खड़ा होने ही वाला था कि हेडमास्टर साहेब मेरी क्लास के दरवाज़े पर खड़े हुए। पूछा क्या बात है।

गणित के मास्टर तमतमा गये। बोले कि लड़के को तो बेंच पर खड़ा होना ही पड़ेगा, एसडीओ का पुत्र है तो क्या। हेडमास्टर साहब ने कुछ समझाने की कोशिश की पर गणित के मास्टर साहेब ने उन्हें सबके सामने कह दिया कि आप डरते हैं। इन सबके बीच मैं अबोध बालक समझ नहीं पा रहा था कि बेंच पर ही तो खड़ा होना है, इसमें इतना बतंगड़ क्यों - आख़िर मैंने होमवर्क तो नहीं किया है ना।

पर हेडमास्टर साहेब ने भी कच्ची गोलियाँ नहीं खेली थीं - बिलकुल श्रीलाल शुक्ल के कथानक के हेडमास्टर थे। बोले मैं इस लड़के को अपने ऑफिस में ले जा रहा हूँ, वहीं सजा दूँगा। गणित के मास्टर साहब ओवररूल हो गये। फिर हेडमास्टर साहेब मुझे अपने कमरे में ले गये और कॉपी में होमवर्क वाला आयत बनवाया। फिर एक विजयी योद्धा की भाँति मुझे लेकर क्लास में गये और गणित के मास्टर साहेब से बोले - लीजिये हो गया आपका होमवर्क। मानों मास्टर साहेब को ही कोई होमवर्क मिला हो, जो पूरा हो गया।

आज ये कहानी बताते हुए हँसी आती है, पर उस वक्त ये पूरा अनुभव कटु ही रहा था जब एक बेचारे अबोध बालक की मामूली गलती के ऊपर राग दरबारी का सारा नाटक रचा गया था।


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