Friday, 5 May 2017

Requiem for Lal Batti (लाल बत्ती का शोक)

जब से उजड़ा है सरकारी वाहन का सिंदूर
ग़ायब नेता अधिकारी के चेहरे का है नूर
चेहरे का है नूर बड़ी मायूसी छाई
हाय कहॉं है रश्मि का रथ, कहॉं है कोहेनूर!

जब नेता जी कभी निकलते थे पिक्चर बाज़ार
छँटे रास्ते की सब भीड़ मिले सलाम हज़ार
मैडम जी की किटी पार्टी की रौनक़ भी तभी बने
जब वे आवें लाल बत्ती की गाड़ी भईं सवार

सरकारी साहब के बच्चे क्रिकेट खेलने जाएँ
या स्कूल के टीचर औ' बच्चों पर रौब जमाएँ
लाल घूमती बत्ती जब गाड़ी पर चकमक करती
क्लब रेस्तराँ होटल में जमकर डिस्काउंट पाएँ

करें पार्किंग मनमर्ज़ी की, ट्राफिक सिग्नल जंप करें
नहीं कभी जुर्माना होना, नहीं कभी चालान भरें
बिना लाइसेंस के भी बाबालोग घुमाते गाड़ी हैं
आम आदमी, बाक़ी ट्राफिक, फुटपथिये सम्मान करें

लेकिन जबसे बत्ती छिन गई मन है बड़ा उदास
वी आई पी ठप्पे के बिन जग ना आए रास
टोल पार्किंग देना भारी, गति जीवन की धीमी भई
चौराहे पर ठुल्ला रोके, मन में छाये त्रास

लाल बत्ती क्या भई तिरोहित मित्र सहेलियॉं व्यंग्य करें
नौकर-चाकर, माली और चपरासी ज़्यादा तंग करें
आसमान से गिरे अचानक कठिन धरा पर मन आहत
कैसे मैडम, साहब, नेता आम-जनों का संग करें

हे प्रभु मेरा सब हर लो, हर लो दौलत धन
मेरा घर, सब रिश्ते, शोहरत सब तुमको अर्पण
(जीवन सूना, व्यर्थ है लगे है, वाहन लगे कबाड़)
पर मोटर की बत्ती लाल लौटा दो, भगवन्!
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