Tuesday 24 October 2017

अनुस्वार की महिमा

आपने उर्दू ज़बान में नुक़्ते के हेर-फेर से होने वाले अनर्थ के बारे में सुना होगा। हिंदी में अनुस्वार के प्रयोग में वैसी ही सावधानी वांछित है। हिंदी भाषा के विशारद आपको बताएँगे कि किसी को बहुवचन में पुकारने में अनुस्वार लगाना अशुद्ध है। जैसे बच्चों को पुकारना है तो आपको कहना चाहिये, "बच्चो!" न कि "बच्चों!" ग़ौर करें कि सही शब्द में अनुस्वार नहीं लगाया गया है। यह मात्र वर्त्तनी का दोष नहीं है, व्याकरण का है।

यदि आप अपनी बिल्डिंग के निवासियों को सोसाइटी की किसी सभा में बुलाएँगे तो कहेंगे, "भाइयो और बहनो! कल चार बजे की सभा में अवश्य आइयेगा!" न कि "भाइयों और बहनों!" यह अलग बात है कि आप कई महिलाओं को बहन कहना नहीं चाहते। फिर आपका संबोधन होगा, महिलाओ और सज्जनो!" क्या कह आपने? कुछ लोग तो सज्जन कहे जाने योग्य ही नहीं हैं? चलिये छोड़िये, आप कौनसी बात ले बैठे? फिर उन्हें "पुरुषो" से पुकार लीजिये। अब पुरुष से भी कोई समस्या है क्या?

आशा है आप भाषा की यह यह शुद्धता समझ गये होंगे। अब यदि कोई ज़ोर से आपको पुकारे, "मित्रों!" चाहे सड़क चलते पुकार ले, या टीवी-रेडियो पर, तब आप क्या करेंगे? चुपचाप इस भावुकता भरी पुकार को व्याकरण का प्रमाद समझकर अनसुना कर दीजिये और वहाँ से खिसक लीजिये। इसी में आपकी भलाई है। अपना बटुआ भी संभाल लीजियेगा। कोई अनहोनी हो जाये तो यह मत कहियेगा कि मैंने व्याकरण का पाठ ठीक से नहीं पढ़ाया।