Monday, 6 November 2017
NO FRILLS, AT WHAT COST?
Tuesday, 24 October 2017
अनुस्वार की महिमा
यदि आप अपनी बिल्डिंग के निवासियों को सोसाइटी की किसी सभा में बुलाएँगे तो कहेंगे, "भाइयो और बहनो! कल चार बजे की सभा में अवश्य आइयेगा!" न कि "भाइयों और बहनों!" यह अलग बात है कि आप कई महिलाओं को बहन कहना नहीं चाहते। फिर आपका संबोधन होगा, महिलाओ और सज्जनो!" क्या कह आपने? कुछ लोग तो सज्जन कहे जाने योग्य ही नहीं हैं? चलिये छोड़िये, आप कौनसी बात ले बैठे? फिर उन्हें "पुरुषो" से पुकार लीजिये। अब पुरुष से भी कोई समस्या है क्या?
आशा है आप भाषा की यह यह शुद्धता समझ गये होंगे। अब यदि कोई ज़ोर से आपको पुकारे, "मित्रों!" चाहे सड़क चलते पुकार ले, या टीवी-रेडियो पर, तब आप क्या करेंगे? चुपचाप इस भावुकता भरी पुकार को व्याकरण का प्रमाद समझकर अनसुना कर दीजिये और वहाँ से खिसक लीजिये। इसी में आपकी भलाई है। अपना बटुआ भी संभाल लीजियेगा। कोई अनहोनी हो जाये तो यह मत कहियेगा कि मैंने व्याकरण का पाठ ठीक से नहीं पढ़ाया।
Sunday, 13 August 2017
GREEN ACTIVISM or THE UNMAKING OF MAKE-IN-INDIA
Monday, 7 August 2017
CHAMBER vs CHAMBER
Such qualification of the location is necessary. His office is either the entire building or a floor or a wing on a floor with all its broken furniture, unkempt surroundings, beetle-juice stains, gossiping employees and strewn paper and files. But the officer's office chamber is an oasis in a desert, with split air-conditioners, polished desk, swanky chairs, a PC, a multifunction printer that often performs no function, a laptop kept casually open to impress, a few English newspapers to keep the sahib busy and what have you. All behind a hermetically sealed door to keep the filth out.
What is a chamber anyway? Ask a municipal worker what he understands by a chamber and he will tell you that it is a manhole that is used for inspecting and cleaning the underground sewage gutter. Yes, it has all the features of a sahib' chamber - it has a door or a cover, it is insulated from its surroundings and has local climate control as well. As for the contents and the occupant, well .. ..
Friday, 7 July 2017
Why the Fax Machine Refuses to Die
Saturday, 17 June 2017
Airlines Khap Panchayat
The traveller, as reported, had created a scene at the airport. Same reports also say that he flung a printer down, but there are no reports of any attack on an airline staffer. Misbehaviour, if any, at the Airport should be dealt under airport rules or under laws on vandalism, assault etc., but not by airlines rules.
The traveller had not even been issued a boarding pass. Merely buying a ticket doesn't make him a flyer. For being a flyer, he should be inside the aircraft. If misbehaviour at the check-in counter puts one on the no-flyer list, we can extend this argument to absurd limits - an argument with an airline porter over wages, an argument or misbehaviour over excess baggage, a scuffle in the car parking lot with an airline staff or a fight with him in the vegetable market.
The airlines have got emboldened by the way the earlier case was handled. But, that was an act of misbehaviour and assault INSIDE the aircraft, hence airlines rules applied. If every service provider starts putting customers on no-service lists, I don't know what the laws of the land would be used for.
I do not agree with the airlines this time.
Saturday, 13 May 2017
साईकिल और मैनेजमेंट
Friday, 5 May 2017
Requiem for Lal Batti (लाल बत्ती का शोक)
ग़ायब नेता अधिकारी के चेहरे का है नूर
चेहरे का है नूर बड़ी मायूसी छाई
हाय कहॉं है रश्मि का रथ, कहॉं है कोहेनूर!
जब नेता जी कभी निकलते थे पिक्चर बाज़ार
छँटे रास्ते की सब भीड़ मिले सलाम हज़ार
मैडम जी की किटी पार्टी की रौनक़ भी तभी बने
जब वे आवें लाल बत्ती की गाड़ी भईं सवार
सरकारी साहब के बच्चे क्रिकेट खेलने जाएँ
या स्कूल के टीचर औ' बच्चों पर रौब जमाएँ
लाल घूमती बत्ती जब गाड़ी पर चकमक करती
क्लब रेस्तराँ होटल में जमकर डिस्काउंट पाएँ
करें पार्किंग मनमर्ज़ी की, ट्राफिक सिग्नल जंप करें
नहीं कभी जुर्माना होना, नहीं कभी चालान भरें
बिना लाइसेंस के भी बाबालोग घुमाते गाड़ी हैं
आम आदमी, बाक़ी ट्राफिक, फुटपथिये सम्मान करें
लेकिन जबसे बत्ती छिन गई मन है बड़ा उदास
वी आई पी ठप्पे के बिन जग ना आए रास
टोल पार्किंग देना भारी, गति जीवन की धीमी भई
चौराहे पर ठुल्ला रोके, मन में छाये त्रास
लाल बत्ती क्या भई तिरोहित मित्र सहेलियॉं व्यंग्य करें
नौकर-चाकर, माली और चपरासी ज़्यादा तंग करें
आसमान से गिरे अचानक कठिन धरा पर मन आहत
कैसे मैडम, साहब, नेता आम-जनों का संग करें
हे प्रभु मेरा सब हर लो, हर लो दौलत धन
मेरा घर, सब रिश्ते, शोहरत सब तुमको अर्पण
(जीवन सूना, व्यर्थ है लगे है, वाहन लगे कबाड़)
पर मोटर की बत्ती लाल लौटा दो, भगवन्!
---०००---
Saturday, 10 December 2016
My Lesson From the Gymnasium
Last few weeks of training in a gymnasium has taught me a few things about life and management.
1. Everyone needs motivation. I always thought that CEOs or Senior Executives did not need external motivation. Their position and responsibilities are enough to keep them charged. But, it feels good when the gym instructor tells me, "Yes, you can do it. Come on! Now, that is a good boy!" Yes, he calls me a boy and I feel elated when he gives me those small bits of praise. And, I get energised to go the extra bit - a few more pull-ups, extra leg curls, some more weight on the bar or a few more stretches.
2. Rest is a chimera. When he tells me to lie down on a mat I mistakenly think that he wants me to relax. But, he has something else in store - floor exercises. He never had any thoughts to let me relax. I often feel that the guy cheats; says that I can relax and then begins a new gruelling session.
3. Work can be relaxing sometimes, or most of the times. After a gruelling workout, the treadmill or the exercycle feels like relaxation! It was quite a chore earlier for me to walk on the treadmill for even ten minutes. But, once I have worked on the stretch targets given by my gym trainer and when I feel like I would drop dead, he tells me, "Now, you can do the treadmill for five minutes!" O! What a relief these words bring to me. Mere treadmill? Thank you, Master! Even a six kmph trot on the treadmill feels like a good spell of rest.
So, friends! Don't feel small if you secretly crave that pat on your back. And, do give one to those who silently work for you. Also remember, those stretch targets never hurt anyone - just give your people (or take for yourselves) an occasional break with some light assignments; a vacation can be taken but rarely.
Sunday, 27 November 2016
पंचतंत्र और नोटबंदी
एक संन्यासी था, जो दिनभर आस-पास के गाँवों में भिक्षा माँगकर गुज़र-बसर करता था। शाम को भोजन के बाद यदि कुछ अनाज बच जाता था तो वह उसे कपड़े की एक पोटली में बॉंधकर अपनी कुटिया में दीवाल पर लगी एक खूँटी पर टाँग देता था। लेकिन रात के समय एक चूहा कूद-कूद कर उसकी पोटली में छेद कर डालता और सारा अनाज चट कर जाता था। यह देख भिक्षुक ने दीवाल की खूँटी को थोड़ी ऊँचाई पर ठोक दिया। लेकिन चूहा फिर भी उछलकर पोटली का कपड़ा काट डालता और अनाज का दाना-दाना खा जाता। संन्यासी ने खूँटी को बार-बार ऊँचा, और ऊँचा किया पर चूहे में तो मानों कोई दैवी शक्ति समा गई थी। उसके कूदने की क्षमता बढ़ती ही चली जाती थी।
यही नहीं, चूहे की भूख भी असीमित प्रतीत होने लगी थी। पोटली में चाहे सिर्फ़ मु्ट्ठी भर अनाज हो या थैलीभर, चूहा रातभर में ही सारा का सारा चट कर जाता था। हैरान संन्यासी ने अपने एक मित्र से अपनी परेशानी बताई। मित्र ने संन्यासी की कुटिया की पड़ताल की, इधर-उधर देखा, दीवार और फ़र्श को ठोका-बजाया, फिर बोला - तुम्हारी कुटिया के नीचे उस शैतान चूहे ने बड़ा बिल बना रखा है, चलो ज़मीन खोदकर देखते हैं।
जब दोनों मित्रों ने मिलकर ज़मीन खोदी तो भौंचक्के रह गये। चोर चूहे ने न सिर्फ़ अपना बिल बनाया था, बल्कि कुटिया के नीचे एक बड़ा तहख़ाना बना रखा था। उस तहख़ाने में मनों अनाज भरा हुआ था। अब संन्यासी की समझ में आया कि उसका सारा भोजन कहॉं चला जाता था। चूहा थोड़े-बहुत अनाज से अपना पेट भर लेता था, पर एक लोलुप चोर की तरह बाक़ी सारा अनाज ले जाकर अपने गुप्त तहख़ाने में जमा करता रहता था। ऐसा कर-करके जहाँ एक ओर चूहा असीमित अन्न-धन का स्वामी बन गया वहीं संन्यासी एक निर्धन भिक्षुक ही रहा।
यह सब देखकर संन्यासी के मित्र ने कहा कि हो न हो, इस कुटिल चूहे की छलाँग लगाने की इस अद्भुत शक्ति का रहस्य यह विशाल धन भंडार ही है, वर्ना एक मामूली चूहे की क्या बिसात कि इतनी ऊँची-ऊँची कूद लगाए। उसने कह - चलो इसका सारा धन नष्ट कर देते हैं। फिर दोनों ने मिलकर चूहे द्वारा संचित सारे अनाज को बाहर निकाल कर अग्नि में होम कर दिया।
फिर संन्यासी के मित्र ने उससे कहा कि आज तुम अपनी पोटली सबसे नीचे वाली कील पर टांगना, देखें चूहा क्या करता है। संन्यासी ने वैसा ही किया, और रात में सोने का नाटक करते हुए चूहे की ताक में जगा रहा। चूहा आया, लेकिन यह क्या? बिल्कुल मरी हुई-सी चाल से चूहा पोटली तक आया। फिर उसने कूद लगाई, पर आश्चर्य! इस बार उसकी उछाल कुछ अंगुलों तक ही सीमित रही। चूहे ने बड़ी कोशिश की, पर नीचे लटकी पोटली तक भी नहीं पहुँच पाया। उसने बहुत चीं-चीं की, तरह-तरह की आवाज़ें निकालीं पर कुछ नहीं हुआ। आख़िरकार थक हार कर वह कुटिया के बाहर चला गया। इयके बाद फिर वह चूहा संन्यासी की कुटिया में कभी नज़र नहीं आया।
संन्यासी समझ गया कि चूहे की ताक़त उसके धन में ही थी। संचित धन के बल पर न सिर्फ़ वह शारीरिक शक्ति में बल्कि मानसिक आत्मविश्वास में भी अतुलनीय क्षमता का स्वामी बन गया था। धन हाथ से निकलते ही चूहे की शक्ति क्षीण हो गई और वह परास्त हो गया।
इस कहानी का नोटबंदी से परेशान और चहुँओर कूदफांद करनेवालों से कोई संबंध नहीं है।