Friday, 29 December 2017
बचपन की मूँगफली
Thursday, 14 December 2017
When Free Market is Not Good Enough
Thursday, 30 November 2017
Call me Mister, Yo Salesman!
Wednesday, 15 November 2017
मेरा राज्य बिहार
भारत के प्राचीन देश में मेरा राज्य बिहार
सबसे पहले यहीं बनी थी प्रजातंत्र सरकार
प्रजातंत्र सरकार विश्व की पथप्रदर्शिका
संस्कृति की औ' मानवता की मार्गदर्शिका
यही बिहार का राज्य रहा जो विश्वगुरु कहलाता था
विक्रमशिला और नालंदा, ज्ञान से गहरा नाता था
जब किंतु वे नष्ट हुए उबर नहीं पाया अबतक
क्लांतिहीन हो गया राज्य जो ज्ञानपुंज का था रक्षक
नये देश ने उत्साहित हो बागडोर सँभाली थी
जैसे ही इस अँधियारे में राह निकलने वाली थी
तभी डँस गया नाग विषैला फिर घेरा अँधियारे ने
सूखा ठूँठ बस बचा जहाँ फूलों की सुंदर डाली थी
छात्र हुए हैं दिशाहीन, शिक्षक कर्त्तव्य से स्खलित हुए
मात-पिता अति चिंतित हैं, संतान-व्यथा से गलित हुए
याद करो मागध, वैशाली और जनक के वैभवकाल
गंगा से सिंचित ये धरती क्यों होती रहती बेहाल
लूट-खसोट और धमकी-बलवे दिनचर्या में आम हुए
अपहरण, फिरौती, बेदख़ली और कितने क़त्लेआम हुए
भ्रमित-भयातुर जन पशुओं की भाँति दुबके बैठ रहे
जातिवाद, लालच, हथियार प्रजातंत्र के दाम हुए
भ्रष्टाचार, निष्कर्म, निरर्थक शासन, कुछ ना होता है
बेबस, मूक नागरिक बस अपनी क़िस्मत को रोता है
भई किसान की भूमि सूखी जो वृष्टि ने आँखें फेरीं
हर ग़रीब और हर किसान क़र्ज़ों का बोझा ढोता है
बुद्ध, महावीर की धरती तनिक शांति को रोती है
मॉं अपने बच्चे क़िस्मत पर जगती ना सोती है
रक्षक भक्षक बन बैठे, अपनी रोटी हैं सेंक रहे
जनता वहीं चिता से लगकर ख़ाली पेटों सोती है